क्या है कर्जमाफी और राइट ऑफ में अंतर —

  1. क्या है राइट ऑफ

विलफुल डिफाल्टर उन कर्जदारों को कहते हैं जो सक्षम होने के बावजूद जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे. लेकिन जब इनसे कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती तो बैंक इनके कर्ज को राइट ऑफ कर देते हैं यानी बट्टे खाते में डाल देते हैं. यह कर्जमाफी नहीं है, बल्कि ऐसे कर्ज को लगभग डूबा मान​ लिया जाता है और यह रिजर्व बैंक के नियम के तहत होता है
रिजर्व बैंक के नियम के अनुसार, पहले ऐसे लोन को नॉन परफॉर्मिंग ऐसट यानी एनपीए माना जाता है. फिर इसके बाद भी जब उनकी वसूली नहीं हो पाती और संभावना बहुत कम रहती है तो इस एनपीए को राइट ऑफ कर दिया जाता है यानी बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. राइट ऑफ कर्जमाफी नहीं है. बट्टे खाते में डाला इसलिए जाता है, ताकि बहीखाते में इस कर्ज का उल्लेख न हो और बहीखाता साफ-सुथरा रहे और उसी हिसाब से प्रभावी तरीके से टैक्स देनदारी हो. लेकिन यह माफी नहीं है, अगर भगोड़े कारोबारी पकड़े गए और भारत आए तो उनसे कानूनी प्रक्रिया के तहत यह कर्ज वसूला जा सकता है. यह सभी बैंकों में आम चलन है और रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक किया जाता है.

  1. कर्जमाफी में क्या होता है

कर्जमाफी में बैंक पूरी तरह से कर्ज वसूली को निरस्त कर देते हैं और उसे बकाया से हटा देते हैं. इसकी बाद में किसी भी तरह से वसूली नहीं हो सकती. आमतौर पर किसान कर्ज के मामले में ऐसी कर्जमाफी देखी जाती है.

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