तन और मन

भगवान कहते हैं की मुझे तेरे तन की नहीं मन की जरूरत है
मुझे तन से नहीं सच्चे मन से भज पर होता क्या है हम भगवान को तो अपना तन समर्पित कर देते हैं और परिवार को अपना मन….

माला हाथ में पकड़ी होती है और चिंतन परिवार का हो रहा होता है
जबकि होना ऐसा चाहिए कि मन परमात्मा में लगा हो और तन परिवार के कार्यो में ……

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